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Ath Shrimahabharat Katha
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Barnes and Noble
Ath Shrimahabharat Katha
Current price: $29.99
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गांधारी मन-ही-मन देख रही थी कि अरण्य में आग लगी है और एक-एक वृक्ष उस अग्नि में स्वाहा हो रहा है। वह दौड़ रही है, पुकार रही है, परंतु पास में कोई नहीं है। वह अकेली है। श्रीकृष्ण महाराज ने द्वारका की अग्नि अपने हाथ से दूर की है। कालयवन को मृत्यु देनेवाले श्रीकृष्ण भी यहाँ दिखाई देते हैं। वह भयभीत होकर बोली, अरण्य की यह अग्नि ज्वाला हमारे शत पुत्रों को लपेट रही है, रक्षा कीजिए! इस घटना के पश्चात् सबकुछ ठीक होगा न? द्रौपदी मौन खड़ी रही, तो श्रीकृष्ण ने पूछा, क्यों मौन हो? श्रीकृष्ण महाराज, आप राजप्रासाद के राजपुरुष हो। हम आपको क्या दें? हमारे यहाँ सूर्यथाली है। उसमें पाँच घरों से भिक्षा माँगकर जो कुछ मिलता है, वही खाते हैं। थोड़ी भिक्षा रखी है, वह भी अभी-अभी गाय को देनेवाली थी। हम संन्यस्त वृत्ति से जीवन निर्वाह करते हैं। आपको देने के लिए केवल फल हैं, जो हम सायंकालीन भोजन में खाते हैं। कल जब सूर्योदय होगा तो सूर्यथाली में भोजन मिलेगा। हम विवश हैं, श्रीकृष्ण महाराज! -इसी उपन्यास से 'महाभारत' का संक्षेप इस उपन्यास में होने पर भी मुख्य केंद्र हैं-श्रीकृष्ण, गांधारी। भीष्माचार्य, दुर्योधन, शकुनि, धृतराष्ट्र, कर्ण आदि पात्र इस उपन्यास में अपनी-अपनी भूमिका के साथ आए हैं। वैसे ही राजमाता कुंती, महारानी गांधारी, वृषाली, द्रौपदी, सुकन्या अपनी-अपनी भूमिका लेकर उपन्यास में हैं। अत्यंत पठनीय एवं रोचक पौराणिक कृति।